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द़र्दे दिल को भूलकर होठों पर हंँसी लेकर लोगों में खुशी बांटता हूंँ मैं ।
प्यार के फूल खिला कर दिलों को महकाता हूँ मैं ।
नफ़रतों को दूर कर प्यार के बीज बोते जाता हूंँ मैं ।
दिलों में फैली नफ़रत की होली जलाता हूँँ मैं ।
मज़लूमो के ब़सेरों को जलाने से बचाता हू्ँँ मैं ।
हैव़ानिय़त के हाथों इंसानिय़त की इज़्ज़त को लुटने से बचाता हूँँ मैं ।
ठोकर खाकर गिरने वालों को थामकर उन्हें अम़न का रास्ता दिखाता हूँँ मैं ।
आपकी रचना से प्रेरित मेरा प्रयास स्वीकृत हो।
धन्यवाद !

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