आत्मज्ञान की प्राप्ति होने से आत्मिक संतोष की अनुभूति होती है । निरापद भाव मे शत्रु और मित्र का अन्तर समाप्त हो जाता है । माया मोह से परे आत्मा स्वछंद जीवन जीने के लिये कृत संकल्प हो जाती है ।
आध्यात्म के शिखर पर आत्मा नश्वर शरीर को त्यागकर परमात्मा मे विलीन हो जाती है। यही गीता सार है।
आध्यात्मिक विवेचना का स्वागत है !
हार्दिक साधुवाद !
आत्मज्ञान की प्राप्ति होने से आत्मिक संतोष की अनुभूति होती है । निरापद भाव मे शत्रु और मित्र का अन्तर समाप्त हो जाता है । माया मोह से परे आत्मा स्वछंद जीवन जीने के लिये कृत संकल्प हो जाती है ।
आध्यात्म के शिखर पर आत्मा नश्वर शरीर को त्यागकर परमात्मा मे विलीन हो जाती है। यही गीता सार है।
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