सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Author
16 Dec 2019 12:05 PM
आभार
आभार
ज़िन्दगी के इस सफ़र मे हम निकले थे अकेले।हमसफ़र बनते रहे, बिछुड़ते रहे ,कारवाँ बनते रहे ,बिखरते रहे ,दोस्त बनते रहे, बिगड़ते रहे ।
सफ़र की इन्तिहां मे हम अकेले रहे साथ कोई न था।
श़ुक्रिया