सत्ता की कुर्सी की दौड़ में लोलुपता चरम सीमा पर पहुँच चुकी है। बेशर्म राजनेता अपने स्वार्थ पूर्ति के इस हद तक गिर सकते हैं ये स्वप्न मे भी सोचा न था । आपकी प्रासंगिक गूढ़़ कविता सटीक प्रस्तुती है।
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सत्ता की कुर्सी की दौड़ में लोलुपता चरम सीमा पर पहुँच चुकी है। बेशर्म राजनेता अपने स्वार्थ पूर्ति के इस हद तक गिर सकते हैं ये स्वप्न मे भी सोचा न था ।
आपकी प्रासंगिक गूढ़़ कविता सटीक प्रस्तुती है।