डी. के. निवातिया
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22 Oct 2019 05:53 PM
आदरणीय श्यामकुमार जी, प्रेम और सौहार्द्य के प्रतीक सामाजिक विचारो की अनुभूति को प्रकट करना है, इसे तुलनात्मक कसौटी पर रखकर कवित्त भाव की अवहेलना न करे ! ऐसा कोई मंतव्य नहीं है, और लेखन हर विषय पर किया जा सकता है, नकारात्मक या सकारात्मक व्यक्तिगत विचारशीलता पर निर्भर करता है !
करवा चौथ
करा लिए चरण स्पर्श?
करा लिए पूजा स्वयं की?
अहं तुष्ट और अभिमान पुष्ट हो गया
पुरुषों!
तुम्हारी इसी विषम-दुर्भावना ने
समानता को धता बताया है
और नारियों!
तुम चांद देखने तक ही सिमटी रहोगी?
या कभी
चांद तक पहुंचने का यत्न भी करोगी?