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आपकी रचना अत्यंत प्रभावी है परन्तु कुछ त्रुटि सुधार की आवश्यकता है जैसे त्योहार को त्यौहार करें ,पबित्र को पवित्र करें ,दुख-सुख को ऐसे लिखें ,रात-दिन को ऐसे लिखें (-) चिन्हों का ध्यान रखें , ,कृपया इसे अन्यथा न लें ! स्नेह ‘एकलव्य’

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3 Nov 2018 11:31 PM

धन्यवाद आदरणीय आपका आभार आदरणीय

आप सभी बंधुजन व बड़े भ्रातजन को सादर नमस्ते व प्रणाम्।
त्योहार और त्यौहार पर थोड़ा सा कुछ कह कर मैं मेरे विचार प्रकट करना चाहता हूँ और आप सभी से टिप्पणियाँ अपेक्षित हैं।

पर्व (अंग्रेज़ी भाषा में फेस्टिवल) के लिए पर्यायवाची के रूप में जो शब्द सामान्यतः प्रयुक्तत होता है वह लिखित में ‘त्योहार’ होता है और उच्चारण में ‘औ’ अधिकतम ‘त्यौहार’ निकलता है, जो कि अब लिखित में भी प्रयुक्त होता पाया जाता है किंतु वास्तविक शब्द है ‘त्योहार’

एकलव्य जी ने बहुत अच्छा शीर्षक दिया इस मंच पर कि बहुत छोटी सी बात पर चर्चा एवं परिचर्चा हो सके।

और एक विचार मातृभाषा प्रभाव (मदर टंग इन्फ्लुएंस, जो कि संक्षिप्त में MTI के नाम से औद्योगिक क्षेत्रों में प्रचलित है) पर।

सभी राज्यों, सभी राज्यों के पृथक पृथक जनपद, सभी जनपदों के अलग अलग ग्रामों व नगरों तथा क्षेत्रों में सभी की बोली (भाषा तो एक ही होती है) वहाँ की परंपरा, बोलने की शैली इत्यादि से प्रभावित रहती है और उसी कारणवश ‘पवित्र’ शब्द बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ पूर्वी भागों में भी ‘पबित्र’ बन जाता है और लिखित रूप में भी यह प्रभाव प्रदर्शित होता है, जो कि देवनागरी के अनुसार एक त्रुटि घोषित की जा सकती है।

एकलव्य जी ने जैसे त्योहार को त्यौहार लिखने को कहा यह भी उच्चारण से ही प्रभावित हो कर कहा जब कि देवनागरी द्वारा स्थापित शब्द है ‘त्योहार’

अजय प्रसाद जी उक्त कविता की 8वीं पंक्ति में प्रथम् शब्द है ‘लाड़’ , जो कि पूर्णतः त्रुटि से भरा-पूरा है और इस सीमा तक मातृभाषा प्रभाव की देवनागरी द्वारा स्थापित शैली अनुमति नहीं देती

जहाँ तक मुझे आभास है, वह शब्द ‘लाड’ है।

सार यही है कि जानकारी देवनागरी की जितनी भी हो सटीक हो भले ही हमारी बोली मातृभाषा प्रभाव से प्रभावित हुई रहे, जो कि होनी ही है।।
शेष, आप सभी से टिप्पणियाँ व आशीर्वाद की कामना में आपका अपना सन्दर्भ मिश्र ‘फ़क़ीर’ ।।

आशा करता हूँ कि एक मंच पर हम सभी कला, रचना इत्यादि के साथ साथ एक दूसरे के साथ रह कर कुछ सीख रहे हैं और किसी को भी किसी की बात का कष्ट न हो यदि उस बात में कोई भी ज्ञान है तो।

बड़ा हो या छोटा, ज्ञान कोई भी किसी को भी दे सकता है और ज्ञान जहाँ भी मिले वहाँ से झुक कर प्राप्त करना ही विवेकपूर्ण है।
जय हिंद

धन्यवाद सन्दर्भ जी ,जो आपने इस परिचर्चा को विस्तृत रूप दिया और अपने विचार व्यक्त किए। आपको अशेष शुभकामनाएं ,सादर ‘एकलव्य’

4 Nov 2018 01:26 PM

धन्यवाद आदरणीय
आपका आभार आदरणीय इस कदर
मेरा मार्गदर्शन करने के लिए ।
मेरी हिन्दी बेहद कमजोर है कारण इंग्लिश teacher होने के नाते हिन्दी प्रयोग कम हो पाता है
लेकीन लिखने की आदत है सो मै क्षमा प्रार्थी हूँ अपनी प्रतिक्रिया दे ते रहे मान्यवर ।

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