Harikishan Mundhra
Author
28 Nov 2018 10:31 AM
जो अपना है अपने में है,
जो कण-कण में है विद्यमान,
वह नित्यप्राप्त, सर्वत्र-व्याप्त,
अनुभूति ‘हरि’ केवल प्रमाण |
रचनाकारों ने अनुभूति के आधार पर माँ पर रचनाएँ की है | जिनका माँ के प्रति समर्पण जितना गहरा है उनकी रचनाएँ उतनी ज्यादा हृदय को छूती है | आपकी अनुभूति जो रचना के रूप में साकार हो रही है उसको मेरा प्रणाम एवं
मेरा एक वोट इसी रचना के नाम |
आदरणीय मूँधड़ा जी, अति सुंदर रचना!
मेरी रचना “माँ का आँचल” का भी अवलोकन करें और यदि सही लगे तो मुझे कृपया वोट दे कर कृतार्थ करें।
सधन्यवाद!