Umesh Kumar Sharma
Author
26 Jun 2022 08:05 PM
हास्य, व्यंग्य में थोड़ी बहुत अतिश्योक्ति की गुंजाइश तो रहती है, इस कविता में साझा अनुभव थोड़े व्यक्तिगत भी हैं, इसे हल्के फुल्के तरीके से पेश करने की कोशिश की है। सामान्यीकरण करने का मेरा कोई इरादा भी नहीं है। पर एक पति जब कुछ व्यक्त करता है तो उसे सब पतियों का प्रतिनिधि समझ लिया जाता हैं। आप कृपया इसे अन्यथा न लें, एक व्यक्तिगत सा गुदगुदाता अनुभव समझ लें, जिसमे एक दूसरे पर अधिकार, एक दूसरे की आदतों को स्वीकार करना भी, अंतर्निहित प्रेम का ही रूप है, बस रूमानी सा दिखता नहीं है।
कुछ अतिशयोक्ति नहीं करते आप पति, पत्नियों को लेकर?