Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

आदरणीय महानुभाव जी को सादर प्रणाम, बहुत ही सत्य कथन पर आधारित कविता है महोदय जी! आपने उसकी (शराबी) मदमस्त एवं उसके परिवार के दर्द को पूरे मनोंभाव से लिखें हैं, आपका बहुत बहुत धन्यवाद्। हमारे एक पड़ोसी थे वे सुबह ब्रश-मंजन करके सीधे शराब की दुकान जाकर अपने शराब का सेवन करते थे कभी यहाँ तो कभी वहाँ सड़क पर लुढ़कते थे, हम सभी पड़ोसी उसके घर जाकर उसका सन्देश उसके घरवालों को देते थे, उसकी पत्नि, उसके बच्चे डंडा लेकर जाते थे और वहीं से मारते-मारते उसे घर तक लाते थे, धन्य है वह पति जो पत्नि के हाथों, धन्य है वह पिता जो अपने संतानों के द्वारा मार खाता था फिर भी वह अपना वह कर्म प्रतिदिन करता था, एक दिन नशे की हालत में दुर्घटना का शिकार हुआ और —–।
हमारें जाँजगीर-चाम्पा जिले से मैनपाट 224 किलोमीटर दूरी पर है, वैसे मैं वहाँ तक अभी तक नहीं पहुँच पाया हूँ।

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
Loading...