अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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1 Feb 2022 11:24 AM
शुक्रिया जी
नाम श्रेयसी दुबे
करो ना काल में जो पुस्तके किताबे है वह सारी की सारी ऐसे ही अलमारियों में बंद रह जाते हैं और घर मैं हम बच्चे भी घर पर रहकर काफी परेशान हो जाते हैं हमें भी स्कूल जाने का काफी इच्छा होती है उन्हें भी काफी इच्छा होती है की कोई आए और हम भी पढ़े और बच्चों की मीठी मीठी आवाज सुनने को मिले सब कुछ सन्नाटा छाया रहता है सारे जगह पर कुछ शोर नहीं होता सब कुछ है एकदम शांत सा रहता है और पुस्तकें भी काफी निराश रहती हैं करो ना काल में कि उनको कोई पढ़ने वाला नहीं होता है इस लेख में यही दर्शाया गया है
धन्यवाद।