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प्रकृति करवट बदल रही है,
नियति मंतव्य बदल रही है,
पाप पुण्य पर हावी है,
मानवता सिसक रही, चहुं ओर लाचारी है ,
कलयुग अवसान प्रारंभित है ,
मृत्यु का सत्य जीवन के यथार्थ पर भारी है,
धन्यवाद !

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उत्कृष्ट रचना,मेरी कविता को भी देखें

धन्यवाद जी

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