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जिसको समझा था ख़ुदा ख़ाक का पैक़र निकला,
हाथ आया जो य़कीं, वह् ‘म सरासर निकला,
इक सफ़र दश्त़े- ख़राबों से सराबों तक है ,
आंख खोली तो जहां , ख़्वाब का मंज़र निकला ,
श़ुक्रिया !

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6 Dec 2021 10:13 PM

बहुत खूब

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