Shyam Sundar Subramanian
Author
22 Oct 2021 11:21 AM
प्रस्तुत रचना में मैंने निस्वार्थ सार्थक जीवन का सार व्यक्त करने की चेष्टा की है। हम में से अधिकांश लोग अपना संपूर्ण जीवन निजी स्वार्थ की तुष्टि में बिता देते हैं। और एक दूसरा वर्ग जिसने सब कुछ भौतिक सुख प्राप्त कर लिया है वह समस्त सुखों से विरक्त होकर अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है। एक तीसरा वर्ग जो जीवन की असफलताओं से निराश होकर जीवन से पलायन कर अध्यात्म की ओर मानसिक शांति की खोज में निकलता है। इस प्रकार का तथाकथित अध्यात्म का कोई प्रयोजन नहीं है।
मानवीय मूल्यों से युक्त निस्वार्थ सार्थक जीवन ही निर्वाह की परिणति है। यही मैंने स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है।
धन्यवाद !
भौतिक शरीर के लिए भौतिक शरीर के अंदर के अंतरतम की आखिरी अनुभूति..
इसके बाद सोचने के लिए कुछ बचता ही नही..
अगर बचता है तो रहस्यभरा आकाश, राहस्यभरा धर्म-आस्था या फिर मन की भौतिक चंचलता। किंतु यह सब उस अनुभूति के बाद नही बचता…
सच में, मैं हमेशा यही सोचता हूँ कि जब मैं बुड्ढा हूंगा, शरीर कातर होगा तो मैं क्या सोचुंगा, हर दिन के डूबते सूरज से अगले दिन का प्रकाश क्या कहकर मागूँगा..
मैं क्या हर दिन अपनी मृत्यु का इतंजार करते हुए डरूंगा या हर्षित हूंगा या फिर घर-परिवार के दैनिक जीवन मे सब कुछ भुलाकर अचानक मृत्यु का झटका सहूंगा..
मर जाऊंगा तो कहाँ जाऊंगा,
आत्मा होकर क्या मैं जो आपमे थे, उनको उस स्थिति के बारे में बता पाऊंगा, कि स्वर्ग-नर्क कैसा है.., मृत्यु के बाद कि यात्रा क्या है..और आत्माबनकर होता क्या है…?
बहुत ही रोचक है और डराबना भी। डराबना इसलिए कि, जब मुझे कोरोना हुआ तो मुझे लगा मैं मर जाऊंगा, जिसकी बजह से मैंने सोचा कि मेरी पत्नि रोएगी, मैं अपने बेटे को बड़ा होते हुए कैसे देखूंगा, और अगर आत्मा बनकर मैं इनके पास भी रहा तो मैं कुछ कर भी नही पाऊंगा..
सब कुछ, बहुत बकबास है, हमैं ये सब नही सोचना चाहिए क्योंकि मन की गति ब्रह्माण्ड से भी ज्यादा है और हमको वही सत्य मानना चाहिए जो दिख रहा है, क्योकि उम्र भर यही दिखने बाला सत्य का ही अनुभव होता है, और किसी का नही..