Pakhi Jain
Author
4 Oct 2021 01:39 PM
संजीव जी ,यह आपके विचारों की विशुद्धि है जो मेरे प्रति बहुमान.है। अनुज के रूप में आपका मिलना ,माँ.शारदे का ही आशीष फल है।स्नेह बनाये रखिये
साहित्य भी आप को पाकर खुद पर गर्व करता होगा, सोचता होगा! चलो कोई तो है जो निस्वार्थ भाव से केवल और केवल मेरे लिए सोचता है। सदा के लिए साहित्याकाश में जाज्वल्यमान रहने वाली इस तूलिका को मैं बारंबार प्रणाम करता हूँ।