30 Sep 2021 08:25 AM
निशब्दता छोड़ जातीं।
Pakhi Jain
Author
30 Sep 2021 08:38 PM
संजीव जी ,यह आपका बडप्पन है धन्यवाद ,स्नेह बनाये रखिये
वाह दी वाह, क्या सुंदर लिखा आपने, आपको पढ़कर ऐसा लगता है कि शब्द और भाव आपके घर की दो परिचारिकाएं हों जैसा आदेश दो बस उसी रूप में ढल जाती हैं। और हमारे लिए समीक्षा की जगह निशब्द था छोड़ जाती, परन्तु जाते जाते हृदय रूपी वीणा के सुक्ष्म तारों को छेड़ उनमें झंकार भर जातीं।
आपको एवं आपकी लेखनी को बारंबार प्रणाम