देश केवल वोट की राजनीति से चलता है। और जब तक वोट द्रण संकल्पित नही होगा राजनीति हटके नही सोचेगी। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों की भी अपनी की राष्ट्र भाषा है, जिनका जन्म ही भारत से हुआ है क्योकि वहां की जनता विस्व में एक अलग पहचान बनाने के लिए संवेदनशील है।
एक बार एक इंग्लैंड निवासी ने अपने हिंदी भाषी मित्र से व्यंगात्मक रूप में कहा था, जब वह अपनी माता और पिता से फोन पर अंग्रेजी में बात कर रहा था…
Why are you not talking in hindi..?You always say that England enslaved Indians..Why are you using this slavery language.
दरअसल हमारे देश में व्याप्त गुलाम मानसिकता ने अंग्रेजी को श्रेष्ठ मानकर उसे सभी भाषाओं से उच्च स्थान देकर उसके अनुपालन के लिए बाध्य कर दिया है। जो हिंदी की उपेक्षा का प्रमुख कारण बनकर प्रस्तुत हुआ है। अंग्रेजी भाषा का बोलचाल में उपयोग शिक्षित होने की पहचान मान लिया गया है। वस्तुतः तथाकथित शिक्षित वर्ग को अंग्रेजी का भी भली-भांति ज्ञान नहीं होता है।
जब तक हमारी मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक देश में हिंदी का विकास केवल वार्ताओं तक सीमित रह कर अधर में लटका रहेगा।
मुझे बहुत दुःःख होता है जब छोटे छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा में बात न करके अंग्रेजी में बात करते हैं। इस तरह वे अपनी मातृभाषा से भी अनिभिज्ञ रहते हैं।
अतः अंग्रेजी हिंदी ही नहीं सभी भारतीय भाषाओं के विकास में मार्ग का रोड़ा बनकर प्रस्तुत है
धन्यवाद !
प्रणाम सर
कटु सत्य की संदेश पूर्ण प्रस्तुति !
केवल एक हिंदी दिवस मनाने से हिंदी का उत्थान संभव नहीं है , जब तक इस विषय में क्षेत्रीयता की राजनीति से हटकर हिंदी को उसके सम्मानीय स्थल पर स्थापित करने के लिए दृढ़ संकल्पित प्रयास नहीं किए जाते। क्षेत्रीय भाषाओं को राजनीतिक स्वार्थ हेतु मुद्दा बनाकर पेश किया जाता है जिसके फलस्वरूप हिंदी के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है , और राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ता है । देश में बढ़ती क्षेत्रीयता एवं वोट बैंक की राजनीति के चलते हिंदी विकास एक प्रश्न चिन्ह बनकर रह गया है।
बुद्धिजीवियों के भाषणों एवं कोरे व्यक्तत्वों से कोई हल नहीं निकलेगा जब तक इस विषय में शासन द्वारा गंभीरता से प्रयास नहीं किए जाते , और जनसाधारण को भी इस विषय में अपना संकल्पित सहयोग प्रदान करना आवश्यक है।
तभी हिंदी का भविष्य उज्जवल हो सकेगा।
धन्यवाद !