ओनिका सेतिया 'अनु '
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28 Aug 2021 08:58 AM
अति उत्तम जवाब ,धन्यवाद
अतिसुंदर प्रश्नवाचक प्रस्तुति !
नियति का चक्र बहुत ही विचित्र है।
जिसे भोगना सभी को पड़ता है ।
एक जन्मदात्री मां जिसे कंस जैसा क्रूर भाई मिला जो उसके सात पुत्रों की नृशंस हत्या का कारण बना।
एक पोषक मां जो अपने निहित संस्कारों के कारण मानव रूप में प्रभु के मातृत्व का कारण बनी।
देवकी के प्रारब्ध में पुत्र सुख भोगना नहीं लिखा था।
इसी प्रकार यशोदा के प्रारब्ध में पुत्र विछोह भोगना लिखा था।
दुःःख की पराकाष्ठा के भाव से अधिक आवश्यक संतोष का भाव है। जो देवकी को अपने आठवें पुत्र के प्राणों की रक्षा से मिला।
उसी प्रकार यशोदा को प्रभु के शिशु रूप से लालन पालन का सुख एवं संतोष उसके विछोह दुःख से अधिक महत्वपूर्ण है।
अतः कालांतर में सुख-दुःःख का विश्लेषण परिस्थितिजन्य कारकों पर निर्भर होता है , जो नियति के चक्र से निर्धारित एवं प्रभावित होता है।
धन्यवाद !