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अब तो हर शहर में मोहब्बत का नाम नहीं।
बैठे हैं हवस जिस्म की लिए दिल से काम नहीं।

ओ ‘मुसाफिर’ जमाना जलता सच्चे दीवानों से,
नफ़रत के घोल है कहीं इश्क का जाम नहीं।।

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25 Feb 2024 02:53 PM

Shi kha

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