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वाह सर…बेहतरीन कहानी….लेकिन आज के जमाने में ऐसी मित्रता की बेल दुर्लभ सी हो गयी है,शायद इस बेल को लगाने वाले लोग नहीं रहे या वो उपजाऊ मिट्टी ही नहीं रही जिसपर यह पल्लवित हो सके।

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?हार्दिक आभार, “आकाँक्षा जी”।
बजा फ़रमाती हैं आप..!?

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