ओनिका सेतिया 'अनु '
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20 Jul 2021 10:49 PM
धन्यवाद जी
“अनु जी” अभी तो परिंदे, मनुष्य से अपना दर्द व्यक्त कर रहें हैं, उन परिंदों को यह मालूम नहीं है कि मनुष्य उस मकड़ी की तरह है, जो स्वयं के बनाए जाल में फंस कर उलझता जाता है, और उलझता जा रहा है। हर मनुष्य रोज दवा खा रहा है।
आपकी यह रचना बहुत ही अच्छा है, धन्यवाद।