बहुत ही प्रासंगिक रचना है नारी के दर्द को बहुत ही उत्कृष्ट तरीके से आपने बताया है यह कभी भी प्यार नहीं हो सकता इस पर सोचने की जरूरत है जबकि पुरुष और नारी एक रथ के दो पहिए हैं एक के बिना दूसरे की कल्पना ही नहीं की जा सकती है ऐसी रचना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
बहुत ही प्रासंगिक रचना है नारी के दर्द को बहुत ही उत्कृष्ट तरीके से आपने बताया है यह कभी भी प्यार नहीं हो सकता इस पर सोचने की जरूरत है जबकि पुरुष और नारी एक रथ के दो पहिए हैं एक के बिना दूसरे की कल्पना ही नहीं की जा सकती है ऐसी रचना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद