रचना अच्छी है पर इसके भाव कोई खास नहीं रह गए हैं। वह अपने मकसद से भटकती नज़र आ रही है।
कभी रचना में भाव की प्रधानता दिखायी जा रही है तो कभी कवि के हॅंसने मुस्कुराने घबराने की बात कर रही है तो कभी गुरू बनने, परिणाम आदि की बात कर रही है। रचना का सार एक दिशा में इंगित कर रचना का सृजन होता तो बेहतर होता !!
रचना अच्छी है पर इसके भाव कोई खास नहीं रह गए हैं। वह अपने मकसद से भटकती नज़र आ रही है।
कभी रचना में भाव की प्रधानता दिखायी जा रही है तो कभी कवि के हॅंसने मुस्कुराने घबराने की बात कर रही है तो कभी गुरू बनने, परिणाम आदि की बात कर रही है। रचना का सार एक दिशा में इंगित कर रचना का सृजन होता तो बेहतर होता !!