pravin sharma
Author
3 Jun 2021 08:49 AM
बहुत खूब कहा आपने
गर्दिश- ए- दौराँ की तन्हाईयों में,
तेरी यादों के ये अब्र -ए – रवाँ ,
दिल के जख्म़ और गहराते हैं ,
गुज़रे वो लम्ह़े एक टीस सी छोड़ जाते हैं ,
जिसे हम समझते हैं हक़ीक़त में प्यार अपना वो फ़साना बन जाते हैं ,
जिन्हे हम समझते दिलबर अपना वो रक़ीब के यार बन जाते हैं ,
श़ुक्रिया !