उधार की सांसों से जिया जा रहा है आज कल, ईश्वर करे अपनी व्यवस्था को अपने हाथों में पुनः ले लें, ताकि मनुष्य उन्मुक्त भाव से सांसे ग्रहण कर सकें! सादर नमस्कार व्यासजी।
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उधार की सांसों से जिया जा रहा है आज कल, ईश्वर करे अपनी व्यवस्था को अपने हाथों में पुनः ले लें, ताकि मनुष्य उन्मुक्त भाव से सांसे ग्रहण कर सकें! सादर नमस्कार व्यासजी।