तीन सौ पैंसठ दिन,बारह माह, से बनता है एक साल! एक साल से हम साथ साथ राहगीर बनकर मिलें हैं और एक-दूसरे की रचनाएं पढ़ने के उपरांत उन पर अपनी टिका टिप्पणी या प्रशंसा करते हुए एक-दूसरे का उत्साह वर्धन और मार्गदर्शन भी करते हुए देखा है, आप जैसे हाथ पकड़ कर सहारा देने वाले ही नवांगतुकों को मार्ग प्रशस्त किया करते हैं,आप जैसा यह कार्य श्रीमान श्याम सुंदर जी भी बहुत सुंदर भाव से करते आ रहे हैं! आशा करता हूं आपका यह सफर आगे भी जारी रहेगा और आपसे प्ररेणा लेकर नवयुवक नये कीर्ति मान कायम करेंगे! साहित्य पीडिया परिवार ने हम जैसों को एक मंच प्रदान किया है जो सराहनीय तो है ही, अपितु यह भी ठीक कहा है आपने जब पत्र पत्रिकाओं में नामधारियों को ही स्थान देने की प्रथा चल रही हो तो ऐसे में साहित्य पीडिया ने इतने लोगों को एकजुट होकर एक दूसरे से जोड़ने का कार्य किया है, उन्हें भी साधुवाद व्यक्त करता हूं!साथ ही आपको भी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं सादर प्रणाम श्रीमान चतुर्वेदी जी।
तीन सौ पैंसठ दिन,बारह माह, से बनता है एक साल! एक साल से हम साथ साथ राहगीर बनकर मिलें हैं और एक-दूसरे की रचनाएं पढ़ने के उपरांत उन पर अपनी टिका टिप्पणी या प्रशंसा करते हुए एक-दूसरे का उत्साह वर्धन और मार्गदर्शन भी करते हुए देखा है, आप जैसे हाथ पकड़ कर सहारा देने वाले ही नवांगतुकों को मार्ग प्रशस्त किया करते हैं,आप जैसा यह कार्य श्रीमान श्याम सुंदर जी भी बहुत सुंदर भाव से करते आ रहे हैं! आशा करता हूं आपका यह सफर आगे भी जारी रहेगा और आपसे प्ररेणा लेकर नवयुवक नये कीर्ति मान कायम करेंगे! साहित्य पीडिया परिवार ने हम जैसों को एक मंच प्रदान किया है जो सराहनीय तो है ही, अपितु यह भी ठीक कहा है आपने जब पत्र पत्रिकाओं में नामधारियों को ही स्थान देने की प्रथा चल रही हो तो ऐसे में साहित्य पीडिया ने इतने लोगों को एकजुट होकर एक दूसरे से जोड़ने का कार्य किया है, उन्हें भी साधुवाद व्यक्त करता हूं!साथ ही आपको भी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं सादर प्रणाम श्रीमान चतुर्वेदी जी।