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कुलदीप जी आपकी रचना सामाजिक अवधारणाओं की झलक प्रस्तुत करती मार्मिक प्रस्तुति है. माँ को समर्पित आपकी यह रचना पाठक के हृदय को छूने में सक्षम है।
आपकी रचना पर 77 वां वोट मेरा भी।
रचना में और अधिक निखार के लिये कुछ संशोधन सुझा रहा हूँ-
1. आँखे = आँखें
2. प्यारी सी = प्यारी-सी
3. होठों = होंठों
4. आ कर = आकर
5. दिवानी ( दिवानी न्यायलय ) = दीवानी (पागल, प्यार में पागल )
6. सोच कर = सोचकर
7. हसी = हँसी
8. ख्वाबों में आ कर = ख़्वाबों में आकर
9. अपने नाम के साथ अपने शहर का नाम भी लिखिये (प्रतियोगिता की शर्त है )

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11 Nov 2018 11:01 PM

रविन्द्र जी तहे दिल से आभार मेरी रचना पढ़ने और अपने बहुमूल्य सुझाव देने के लिए। आपका वोट नहीं मिल पाया है, मैने चैक किया ?

तकनीकी गड़बड़ी के चलते पहले वोट पंजीकृत नहीं हो सका था अब हो गया है।

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