किरदार की अदाय़गी से अदाकार की फ़ितरत पर कोई अस़र नहीं होता है । अपने किरदार में डूब कर अदाकार पर्दे पर पेश आता है। जाती ज़िदगी में उसकी फ़ितरत अलहदा होती है। यही सच्चाई है । श़ुक्रिया !
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किरदार की अदाय़गी से अदाकार की फ़ितरत पर कोई अस़र नहीं होता है । अपने किरदार में डूब कर अदाकार पर्दे पर पेश आता है। जाती ज़िदगी में उसकी फ़ितरत अलहदा होती है।
यही सच्चाई है ।
श़ुक्रिया !