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26 Jan 2021 02:41 PM

देश में गणतंत्र की स्थापना के बहत्तर साल बाद भी गण पर तंत्र ही काबिज रहा, जनता के प्रतिनिधि बनकर उन्होंने भी तंत्र के साथ मिलकर गण की अपेक्षाओं से अपने दायित्वों को निर्वाह करना छोड़ कर अपने हितों में जुट गए, ऐसे में तंत्र को भी लगा कि क्यों न हमें भी अपने हितों को साधने का यह अवसर मिला है तो वह भी अपने हितों को साधने में लग गया, और जब दोनों ने एक-दूसरे के हितों को साधना शुरू किया तब जनता ने सरकारों की अदला-बदली की कोशिश की पर वह भी काम न आई,इसी बीच नवधनाढ्यों ने भी अपने हितों के लिए इन दोनों से गठजोड़ कर दिया, और फिर तो आम जन जो ना तो नौकरी पेशा था,ना कारोबारी,ना सत्ता भोगी, उसे लगने लगा कि अब अपने हकों की लड़ाई स्वयं लडनी चाहिए लेकिन एक सर्वमान्य नेतृत्व के अभाव में यह भी गुटों में, धडों में, जातियों में, क्षेत्रों के आधार पर बंट गया, और काम चलाऊ विकल्प के रूप में इकट्ठा होकर भी एकजुट एवं एक राय कायम नहीं कर पाया है, जिसका ताजा उदाहरण किसान आन्दोलन है, और परिणीति आज का दृश्य है जो किसी भी तरह से जायज नहीं है!सादर प्रणाम श्रीमान चतुर्वेदी जी।

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एक जन प्रतिनिधि होने से आपको देश की स्थिति के बारे में पूरी जानकारी है। आपको सादर प्रणाम, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं बधाई।

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