वर्तमान परिवेश में सामान्य तह यह घटना-चक्र घर घर में स्थान बना चुका है, समाज में यह विकृत तेजी से पैर पसार रही है, और जानते बूझते हुए भी ना तो,सासु माएं और ना ही बहु बेटियां इसी व्यवहार को अपनाति जा रही हैं, बहुएं बेटी बनने को तैयार नहीं है और सासु मां, मां बनने को स्वीकार कर रही हैं, पुत्र और पति के रूप में मौजूद नवयुवक इस वातावरण में स्वयं को असहाय और टूटता हुआ बिखर रहा है या फिर बंट कर उपहास का पात्र बन गया है।सादर प्रणाम श्रीमान प्रेम जी समसामयिक विषयों पर चर्चा करने के लिए आभार।
वर्तमान परिवेश में सामान्य तह यह घटना-चक्र घर घर में स्थान बना चुका है, समाज में यह विकृत तेजी से पैर पसार रही है, और जानते बूझते हुए भी ना तो,सासु माएं और ना ही बहु बेटियां इसी व्यवहार को अपनाति जा रही हैं, बहुएं बेटी बनने को तैयार नहीं है और सासु मां, मां बनने को स्वीकार कर रही हैं, पुत्र और पति के रूप में मौजूद नवयुवक इस वातावरण में स्वयं को असहाय और टूटता हुआ बिखर रहा है या फिर बंट कर उपहास का पात्र बन गया है।सादर प्रणाम श्रीमान प्रेम जी समसामयिक विषयों पर चर्चा करने के लिए आभार।