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अतिसुंदर !
मुझे निष्पंद जड़ न समझो , मेरे अंतः में अभी भी वह चिंगारी निहित है ,
भड़केगी जब वह ज्वाला बन दावानल कर देगी खाक पाप जगत में ,
धन्यवाद !

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