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सर आपकी रचना बहुत अच्छी है किंतु वही पारम्परिक कविता है ,ईस्वर का गुणगान करना उसकी शक्तियों का प्रदर्शन करना अपने आप को उसके सामने तुक्ष दिखाना , अर्थात जो 1000-2000 सालों से चली आ रही है उसी को अपने अच्छे शब्दो में पिरो दिया है । अच्छा होता कि आप इन सुंदर शब्दो से ईस्वर का प्रश्न पूछते और उसी पर प्रश्नचिन्ह करते ।

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