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ख़ुशी की चाह में हम ज़िंदगी गुज़ारते रहे ,
राह की मुश्किलों को झेलते, गम़ सहते रहे,
इस दौरे सफ़र में कुछ दोस्त बनते , बिछड़ते रहे, कुछेक अज़ीज़ बन एहसास- ए – दिल में उतरते गए ,
कुछ दोस्तों के फ़रेब खाकर संभलते गए ,
ख्व़ाहिशों की राह में बार-बार नाक़ामी में भी उम्म़ीद जगाते रहे ,
इस बात से बेख़बर के मुक़द्दर पर कब किसका इख्त़ियार होता है ,
ग़र लाख कोशिश कर ले इंसा वक्त से पहले नस़ीब नहीं जागता है ,

श़ुक्रिया !

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