Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

भौतिक विकास के जगत में मानवीय संवेदना का ह्रास हो रहा है। मनुष्य केआकलन के मापदंड उसके चरित्र एवं उसमें निहित गुणों के स्थान पर उसकी संपन्नता एवं पद हो गए हैं । स्वार्थपरता चरम सीमा पर है। साम दाम दंड भेद की नीति के उपयोग से मनुष्य अपना वर्चस्व सिद्ध करने मैं प्रयासरत है।
यह एक कटु सत्य है।

धन्यवाद !

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
Loading...