Jyoti shrivastava
Author
2 Aug 2021 09:28 PM
बहुत सुंदर गीत
अतिसुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति !
आपकी प्रस्तुति को मैंने अपने शब्दों में प्रस्तुत किया है। कृपया स्वीकार करें :
लब़ खामोश हैं पर आंखों से इज़हार -ए – हाल करती हो ,
हुस्ऩ -ए – मुजस्स़िम होठों की गुलाबी , नैनो की कटारी , ज़ुल्फों की बदली, चूड़ियों की खन खन , पायल की रुनझुन , की अदा से घायल कर देती हो ,
तुम्हें देख आईना भी शरमा जाए तुम इतना सजती सँवरती हो ,
आंखों की छलकती मय़ के प्यालोंं से पिलाकर मदहोश कर देती हो ,
दिल में चाहत की लगन लगाकर इश्क़ की आग सुलगा देती हो,
वो आग जो अश्क़ों से बुझाए नहीं बुझती दिल में
जगाकर मुझे इस क़दर दीवाना बना देती हो ,
कोई मुझे चाहे ये ग़वारा नहीं तुमको जो इस क़दर रूठकर शिक़वे शिकायत करती हो ,
कभी अपना सर मेरे शानों पर रखकर चैन से सोना,
कभी मेरे सीने से लग कर बेवज़ह फूट कर रोना,
तुम्हारी बेइंतेहा मोहब्ब़त का बेज़ुबाँ इज़हार है,
जिसके ज़ुबानी इज़हार का मुझे अब तक इंतज़ार है ।
श़ुक्रिया !