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सुंदर प्रस्तुति।

आपकी प्रस्तुति को मैंने कुछ इस तरह से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कृपया स्वीकार करें :

डगर मुश्किल है साथ कोई नहीं मैं ये जानता हूं ,
ठोकरेंं खाकर गिरता हूं ,संभलता हूं बढ़ता रहता हूं ,
हौसला बुलंद रख ,आगे बढ़ते रहने की ठानता हूं ,
राह में साजिशों के जो बिछाते हैं काँटे उन्हे जानता हूं ,
ख्वाबों की मंजिल आसान नहीं मैं ये हक़ीक़त जानता हूं ,
जज़्बा -ए – जुनूँ हार मानने नही देता आगे बढ़ता रहता हूं ,
रफ्त़ा रफ्त़ा मैं इस शिद्दत-ए- आरज़ू का सफर जारी रखता हूं।

धन्यवाद !

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बहुत अच्छी अपने प्रस्तुति की
आपको सादर प्रणाम

बह्र से इतर हो जाएगा आद०

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