मेरी तक़दीर ख्व़ाबों में बसी रहती है हक़ीक़त की तस्वीर नहीं बनती। फ़ितरत के रंग भी फीके पड़ते हैं कोई मुजस्स़िम तस्वीर नहीं बनती। खुशियों के पल मय़स्सर नहीं होते दर्दो गम़ में डूबी जिंदगी खुश़गवार नहीं बनती।
श़ुक्रिया !
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मेरी तक़दीर ख्व़ाबों में बसी रहती है हक़ीक़त की तस्वीर नहीं बनती।
फ़ितरत के रंग भी फीके पड़ते हैं कोई मुजस्स़िम तस्वीर नहीं बनती।
खुशियों के पल मय़स्सर नहीं होते दर्दो गम़ में डूबी जिंदगी खुश़गवार नहीं बनती।
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