सामाजिक परिवेश में यह सब चुप चाप सह लिया जाता है, इस पर विचार करने को कोई आगे बढ़ने को तैयार नहीं है, शायद इस लिए कि कहीं वह किसी मुसीबत में घिर गया तो,बस यही उसके भावहीन होने की शुरुआत है और बंचित के लिए हाथ आगे बढ़ाने से बचने का आधार। सादर
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सामाजिक परिवेश में यह सब चुप चाप सह लिया जाता है, इस पर विचार करने को कोई आगे बढ़ने को तैयार नहीं है, शायद इस लिए कि कहीं वह किसी मुसीबत में घिर गया तो,बस यही उसके भावहीन होने की शुरुआत है और बंचित के लिए हाथ आगे बढ़ाने से बचने का आधार। सादर