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2 Sep 2020 10:59 PM

धन्यवाद श्याम सुंदर जी, समाज में रहते हुए, यह भी आंकना ज़रुरी है कि उस संगठन में जिसमें हमारे पूर्वजों का खून-पसीना बहा, हमने उसके शासन को निकट से देखा है, आज वही संगठन यह तय नहीं कर पा रहा है,कि किसे बागडोर सौंपी जाए, वह भी तब जब खुद को इस जिम्मेदारी से कोई अलग रहना चाहता है, फिर भी उसी को बाध्य करके अपनी जी हुजूरी से निकटता का बोध कराने में लगे हुए हैं।सादर अभिवादन सहित।

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