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आपकी प्रस्तुति के भाव उत्तम हैं परंतु मुझे उनमें कुछ तारतम्य एवं प्रस्तुति संदर्भ में कुछ कमी प्रतीत होती है।

मैंने कुछ प्रयास किया है कि आपके विचारों को अपनी ओर से कुछ परिवर्तन कर प्रस्तुत किया जाए।
कृपया स्वीकृत हो।

मोहब्ब़त की कसौटी में खरा उतरना भी जरूरी है।
इश्क़ के सफर में हद्दे जुनू्ँ से गुजरना भी जरूरी है।
तलाश ए इश्क़ के आग़ाज़ में फिसलना फिर संभलना भी जरूरी है।
इश्क़ में टूटना बिखरना फिर हौसला जुटा आगे बढ़ना भी जरूरी है।
इश्क़ इक ख्व़ाब है जिसकी ताबीर जानना भी जरूरी है।
फ़लक पर आश़ियाना बनाने की बात करते हो पांव ज़मीं पर जमाना भी जरूरी है।
मोहब्बत की कोई इंतिहा नहीं होती, पर मोहब्ब़त के ख्वाबों में डूबे हुए आंखों के पैमाने जरूरी है।
मेरे इश्क का तुझ पर हुआ क्या असर है ? ,
जो बेखुदी इधर है , क्या तुझको खबर है ?,
ये जानना भी जरूरी है।
गमे दिल का हाल ना पूछो मुझसे कितना गम दिल में बाकी है ये जानना अब जरूरी है।

श़ुक्रिया !

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