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आपकी प्रस्तुति में आपने उल्लेख किया है कि शादी एक खोखली परंपराओं का दंश है। यह कहना उचित नहीं है विवाह एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें स्त्री पुरुष के संबंध को अनुशासित कर मान्यता प्रदान करना और एक परिवारिक इकाई की संरचना एवं स्थापना करना है। कल्पना कीजिए यदि इस प्रकार का कोई बंधन स्त्री पुरुष संबंधों में ना हो तो मनुष्य जीवन अनुशासन की परिधि में न रखकर उन्मुक्त संबंधों युक्त हो जाएगा। जिसके दुष्परिणाम मनुष्य को भोगने होंगे । प्रथम तो उन्मुक्त संबंधों से जन्म ली गई संतानों की पहचान एवं समाज में उनकी स्वीकृति का प्रश्न उत्पन्न होगा। दूसरा उनका पालन पोषण एवं विकास की जिम्मेवारी का प्रश्न भी उत्पन्न होगा। मनुष्य की दशा पशुवत् हो जाएगी जो अपनी संतानों को पैदा कर भटकने के लिए छोड़ देगी और उन्हें उनको जिंदा रहने के लिए दूसरों की कृपा पर निर्भर रहना पड़ेगा।
वर्तमान समय में लिव इन रिलेशनशिप खासकर बड़े शहरों में प्रचलित हो रहा है। आधुनिक दौर में इस सोच को कानूनी मान्यता भी मिल गई है।
पर इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे।
परिवारों में संबंध विच्छेद का कारण इस प्रकार के संबंध मुख्य भूमिका निभाते हैं। दरअसल यह एक संकुचित सोच का नतीजा है , हम केवल अपने स्वार्थ के लिए ही जीना चाहते हैं। हमें अपने परिवार एवं अन्य हित चिंतकों की कोई परवाह नहीं है। आधुनिक अंधी दौड़ में शामिल होकर हम शीघ्रातिशीघ्र सब कुछ हासिल करना चाहते हैं। जिसके लिए हमें परिवार का त्याग करना भी हो तो वह भी स्वीकृत है।
लिव इन रिलेशनशिप संबंधों से उत्पन्न संतानों की पहचान एवं उनके पालन पोषण की जिम्मेदारी के संबंध में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
यदि हम विवाह संबंधों को निभा नहीं सकते तो इसके लिए विवाह व्यवस्था को ही दोष देना उचित नहीं है।

धन्यवाद !

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4 Aug 2020 10:29 AM

आदरणीय,मैने विवाह व्यवस्था को दोष नहीं दिया है,ना ही मैने लिव-इन संबंध के बारे मे बात की
मैने तो अपनी प्रस्तुति में विवाह व्यवस्था से संबंधित किसी भी अतिशयोक्ति पे प्रश्न किया है,

धन्यवाद।

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