Umesh Kumar Sharma
Author
29 Jul 2020 09:13 PM
हमारी संस्कृति प्रकृति से जुड़ी हुई है और मेरा ये भी मानना है कि एक ऐसा सामंजस्य तो जरूर है कि विनीत होकर जब कुछ मांगा जाता है तो वो मिल भी जाता है।
मेरी आपत्ति, किसी की अक्षमता के इस्तेमाल से है
सुंदर कथा प्रस्तुति।
आपकी कथा से मुझे याद आता है कि बचपन में इसी प्रकार हम रात को छत पर बिस्तर बिछा कर सोते थे और जब हवा नहीं चलती थी। तब अब हम एक श्लोक कहते थे जो इस प्रकार है:
अंजनी गर्भ संभूतोः वायुपुत्रो महाबलाः
कुमारो ब्रह्मचारिश्चः तस्मैःःश्री गुरुवैः नमः
इसे आस्था कहिए या चमत्कार अधिकतर श्लोक का उच्चारण करने से हवा चलने लगती थी।
धन्यवाद !