रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता मर्जी बिन खुदा यारो तो जर्रा हिल नहीं सकता खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता
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रहमत जब खुदा की हो तो बंजर भी चमन होता
खुशिया रहती दामन में और जीवन में अमन होता
मर्जी बिन खुदा यारो तो जर्रा हिल नहीं सकता
खुदा जो रूठ जाये तो मय्यसर न कफ़न होता