किसको सुनाऊं हाल दिल ए बेक़रार का। बुझता हुआ चिऱाग हूं अपने मज़ार का। ए काश़ भूल जाऊं मगर भूलता नहीं। किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का।
श़ुक्रिया !
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किसको सुनाऊं हाल दिल ए बेक़रार का।
बुझता हुआ चिऱाग हूं अपने मज़ार का।
ए काश़ भूल जाऊं मगर भूलता नहीं।
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का।
श़ुक्रिया !