वक्त के साथ बदलता है आदमी। गिरगिट की तरह रंग बदलता है आदमी। हम़दर्दी के नक़ाब में खुदगर्ज़ रहता है आदमी। रस़ूख़ से रिश्त़े निभाता है आदमी। भरोसे में रख फ़रेब देता है आदमी। जाने कब किस करवट बैठ जाए। फ़ितरत का फ़नकार है आदमी।
श़ुक्रिया !
You must be logged in to post comments.
वक्त के साथ बदलता है आदमी।
गिरगिट की तरह रंग बदलता है आदमी।
हम़दर्दी के नक़ाब में खुदगर्ज़ रहता है आदमी।
रस़ूख़ से रिश्त़े निभाता है आदमी।
भरोसे में रख फ़रेब देता है आदमी।
जाने कब किस करवट बैठ जाए।
फ़ितरत का फ़नकार है आदमी।
श़ुक्रिया !