Mamta Singh Devaa
Author
12 Jul 2020 06:16 PM
मेरी अभिव्यक्ति को समझने के लिए दिल से धन्यवाद ?
अपनी जबान को बे अर्थ ना कीजिए!
यह फैशन सा हो गया है, सामान्य नागरिकों को कुछ नौकरी पेशा लोग,निरीह प्राणी मानकर, ऐसा आचरण करने लगते हैं, जैसे उसका कोई वजूद नहीं है,बस देश-दुनिया की सारी जरूरतें वह ही पूरी करते हैं, बाकी सब तो निठल्ले बैठे रहते हैं, शायद उन्हें यह आभास नहीं है कि हम ही तो वह लोग हैं, जिनकी मेहनत से इन्हे पगार मिलती है,हम वह हैं जो अदृश्य रह कर एक समाज की अवधारणा को पुष्ट करते हैं, आपकी टिप्पणी यथार्थ परक है,सादर