Seema katoch
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5 Jul 2020 09:31 PM
मेरे पास शब्द नहीं हैं ,,,बहुत बहुत धन्यवाद
6 Jul 2020 12:05 AM
शब्दो के जादूगर के पास शब्द ना हो,,,, विश्वास नहीं होता। समय का अभाव हो सकता है,,,,,
मनोविज्ञान में id ,ego और super ego या जयशंकर प्रसाद की कामायनी की इड़ा और श्रद्धा, बाल्यकाल से मानस में इच्छा व मर्यादा के द्वन्द्व को प्रदर्शित करते हैं।
कम ही शब्दो मे वह सब लिख दिया जो किसी भी सुधी पाठक को लेखन की विवशता ,विचारो की व्यापकता तथा अनुभव तथा संवेदनाओ के विशाल सागर का परिचय देता है।
नये विषय को उठा कर परिणति तक पहुंचाना ,मौलिकता व साहस का द्योतक है । इन कविता संग्रहो पर आने वाले समय में शोध कार्य भी हो सकता है ,ऐसा मेरा अनुमान है।बधाइया व शुभकामनाऐ ।
मेरे पास शब्द नही शेष है ,इतनी उत्कृष्ट रचनाओ की विवेचना करने का,पढ़ तो उसी समय लेता हूँ। इसीलिए थोड़ा समय लगता है।