आपके प्रस्तुत विचारों से मैं सहमत हूं कि आज की युवा पीढ़ी संस्कार विहीन एवं दिग्भ्रमित हो रही है।
इसका मुख्य कारण अनियंत्रित परिवार व्यवस्था है।
आजकल का युवा बिना किसी परिश्रम के सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है। जिसके लिए मैं कुछ भी करने के लिए उद्यत हो जाता है। उसके लिए संस्कारों एवं मानवीय मूल्यों का कोई महत्व नहीं है। औरों की देखा देखी की होड़ में वह आगे निकलना चाहता है। उस पर भीड़ की मनोवृत्ति हावी रहती है और उसमें व्यक्तिगत सोच एवं आत्म विश्लेषण का अभाव रहता है। उसकी सोच एक समूह विशेष की सोच से प्रभावित एवं संचालित होती है। और वह गलती करने पर भी उसे सही सिद्ध करने की कोशिश में लगा रहता है। उसके लिए बड़े बूढ़ों की सलाह एवं पारिवारिक सलाह का कोई महत्व नहीं है। उसने अपने पसंदीदा कुछ चंद लोगों अपना आदर्श मान लिया है और उनके नक्शे कदम पर चलने की कोशिश करता रहता है। उसमें संकटों का सामना करने के लिए आत्मविश्वास की कमी रहती है। जिसके फलस्वरूप संकट आने पर अपने आप को अकेला महसूस कर करने लगता है ,और व्यक्तिगत तनाव एवं अंततः मानसिक अवसाद से घिर जाता है।
यह एक गंभीर स्थिती है। अतः इस विषय में गंभीर चिंतन की आवश्यकता है कि युवा पीढ़ी जो राष्ट्र के भविष्य की निर्माता है , की सोच में परिवर्तन लाने की दिशा में क्या कदम उठाए जाएं जिससे राष्ट्र का उज्जवल भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।
आपके प्रस्तुत विचारों से मैं सहमत हूं कि आज की युवा पीढ़ी संस्कार विहीन एवं दिग्भ्रमित हो रही है।
इसका मुख्य कारण अनियंत्रित परिवार व्यवस्था है।
आजकल का युवा बिना किसी परिश्रम के सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है। जिसके लिए मैं कुछ भी करने के लिए उद्यत हो जाता है। उसके लिए संस्कारों एवं मानवीय मूल्यों का कोई महत्व नहीं है। औरों की देखा देखी की होड़ में वह आगे निकलना चाहता है। उस पर भीड़ की मनोवृत्ति हावी रहती है और उसमें व्यक्तिगत सोच एवं आत्म विश्लेषण का अभाव रहता है। उसकी सोच एक समूह विशेष की सोच से प्रभावित एवं संचालित होती है। और वह गलती करने पर भी उसे सही सिद्ध करने की कोशिश में लगा रहता है। उसके लिए बड़े बूढ़ों की सलाह एवं पारिवारिक सलाह का कोई महत्व नहीं है। उसने अपने पसंदीदा कुछ चंद लोगों अपना आदर्श मान लिया है और उनके नक्शे कदम पर चलने की कोशिश करता रहता है। उसमें संकटों का सामना करने के लिए आत्मविश्वास की कमी रहती है। जिसके फलस्वरूप संकट आने पर अपने आप को अकेला महसूस कर करने लगता है ,और व्यक्तिगत तनाव एवं अंततः मानसिक अवसाद से घिर जाता है।
यह एक गंभीर स्थिती है। अतः इस विषय में गंभीर चिंतन की आवश्यकता है कि युवा पीढ़ी जो राष्ट्र के भविष्य की निर्माता है , की सोच में परिवर्तन लाने की दिशा में क्या कदम उठाए जाएं जिससे राष्ट्र का उज्जवल भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।
धन्यवाद !