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वक्त के दिन और रात।
वक्त के कल और आज।
वक्त की हर शै गुलाम़।
वक्त का है हर शै पे राज।
वक्त की ठोकर से है क्या हुकूमत क्या समाज।
वक़्त की गर्दिश से है आती-जाती रौनकें।
वक्त है फूलों की सेज वक्त है कांटों का ताज।
आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे।
कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज़।

श़ुक्रिया !

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