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दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला।
वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला।
तुम तक़ल्लुफ़ को भी अख़लाक समझते हो।
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला।
क्या कहेंं कितने म़रास़िम थे हमारे उससे।
है वही शख्स़ जो मुंह फेर के जाने वाला।

श़ुक्रिया !

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18 Jun 2020 04:26 PM

बहुत उम्दा
शुक्रिया

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