मजहब के इस भीड़ में ना जाने कितने मुसाफ़िर खो गए , अपने अपने को श्रेष्ठ बनाने में ना जाने कितने रूह रो गए।
शुक्रिया
You must be logged in to post comments.
?
मजहब के इस भीड़ में ना जाने कितने मुसाफ़िर खो गए ,
अपने अपने को श्रेष्ठ बनाने में ना जाने कितने रूह रो गए।
शुक्रिया